श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 707

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्रद्धा के विभाग
अध्याय 17 : श्लोक-9


कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिन: ।
आहारा राजसस्येष्टा दु:खशोकामयप्रदा: ॥9॥[1]

भावार्थ

अत्यधिक तिक्त, खट्टे, नमकीन गरम चटपटे, शुष्क तथा जलन उत्पन्न करने वाले भोजन रजोगुणी व्यक्तियों को प्रिय होते हैं। ऐसे भोजन दुख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कटु= कडुवे, तीते; अम्ल= खटटे; लवण= नमकीन; अत-उष्ण= अत्यन्त गरम; तीक्ष्ण= चटपटे; रूक्ष= शुष्क; विदाहिनः= जलाने वाले; आहाराः= भोजन; राजसस्य= रजोगुणी के; इष्टाः= रुचिकर; दुःख= दुख; शोक= शोक; आमय= रोग; प्रदाः= उत्पन्न करने वाले।

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