श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 363

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदानत स्वामी प्रभुपाद

Prev.png

भगवत्प्राप्ति
अध्याय 8 : श्लोक-13


ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरनमामनुस्मरन।
यः प्रयाति त्यजनदेहं स याति परमां गतिम्।।[1]

भावार्थ

इस योगाभ्यास में स्थित होकर तथा अक्षरों के परम संयोग यानी ओंकार का उच्चारण करते हुए यदि कोई भगवान का चिन्तन करता है और अपने शरीर का त्याग करता है, तो वह निश्चित रूप से आध्यात्मिक लोकों को जाता है।

तात्पर्य

यहाँ स्पष्ट उल्लेख हुआ है कि ओम, ब्रह्म तथा भगवान कृष्ण परस्पर भिन्न नहीं हैं। ओम, कृष्ण की निर्विशेष ध्वनि है, लेकिन हरे कृष्ण में यह ओम सन्निहित है। इस युग के लिए हरे कृष्ण मंत्र जप की स्पष्ट संस्तुति है। अतः यदि कोई– हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे– इस मंत्र का जप करते हुए शरीर त्यागता है तो वह अपने अभ्यास के गुणानुसार आध्यात्मिक लोकों में से किसी एक लोक को जाता है। कृष्ण के भक्त कृष्णलोक या गोलोक वृन्दावन को जाते हैं। सगुणवादियों के लिए आध्यात्मिक आकाश में अन्य लोक हैं, जिन्हें वैकुण्ठ लोक कहते हैं, किन्तु निर्विशेषवादी तो ब्रह्मज्योति में ही रह जाते हैं।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ॐ – ओंकार; इति – इस तरह; एक-अक्षरम् – एक अक्षर; ब्रह्म – परब्रह्म का; व्याहरन – उच्चारण करते हुए; माम् – मुझको (कृष्ण को); अनुस्मरन – स्मरण करते हुए; यः – जो; प्रयाति – जाता है; त्यजन – छोड़ते हुए; देहम् – इस शरीर को; सः – वह; याति – प्राप्त करता है; परमाम् – परं; गतिम् – गन्तव्य, लक्ष्य।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः