श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 462

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्री भगवान का ऐश्वर्य
अध्याय-10 : श्लोक-31


पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्त्रोतसामस्मि जाह्नवी।।[1]

भावार्थ

समस्त पवित्र करने वालों में मैं वायु हूँ, शस्त्रधारियों में राम, मछलियों में मगर तथा नदियों में गंगा हूँ।

तात्पर्य

समस्त जलचरों में मगर सबसे बड़ा और मनुष्य के लिए सबसे घातक होता है। अतः मगर कृष्ण का प्रतिनिधित्व करता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पवनः-वायु; पवताम्-पवित्र करने वालों में; अस्मि-मैं हूँ; रामः-राम; शस्त्र-भृताम्-शस्त्रधारियों में; अहम्-मैं; झषणाम्-मछलियों में; मकरः-मगर; च-भी; अस्मि-हूँ; स्त्रोतसाम्-प्रवहमान नदियों में; अस्मि-हूँ; जाह्नवी-गंगा नदी।

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