श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 310

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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भगवद्ज्ञान
अध्याय 7 : श्लोक-3

मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः॥[1]

भावार्थ

कई हजार मनुष्यों में से कोई एक सिद्धि के लिए प्रयत्नशील होता है और इस तरह सिद्धि प्राप्त करने वालों में से विरला ही कोई मुझे वास्तव में जान पाता है।

तात्पर्य

मनुष्यों की विभिन्न कोटियाँ हैं और हजारों मनुष्यों में से शायद विरला मनुष्य ही यह जानने में रुचि रखता है कि आत्मा क्या है, शरीर क्या है, और परमसत्य क्या है। सामान्यतया मानव आहार, निद्रा, भय तथा मैथुन जैसी पशुवृत्तियों में लगा रहता है और मुश्किल से कोई एक दिव्यज्ञान में रुचि रखता है। गीता के प्रथम छह अध्याय उन लोगों के लिए हैं जिनकी रुचि दिव्यज्ञान में, आत्मा, परमात्मा तथा ज्ञानयोग, ध्यानयोग द्वारा अनुभूति की क्रिया में तथा पदार्थ से आत्मा के पार्थक्य को जानने में है। किन्तु कृष्ण तो केवल उन्हीं व्यक्तियों द्वारा ज्ञेय हैं जो कृष्णभावनाभावित हैं। अन्य योगी निर्विशेष ब्रह्म-अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि कृष्ण को जानने की अपेक्षा यह सुगम है। कृष्ण परमपुरुष हैं, किन्तु साथ ही वे ब्रह्म तथा परमात्मा-ज्ञान से परे हैं। योगी तथा ज्ञानीजन कृष्ण को नहीं समझ पाते। यद्यपि महानतम निर्विशेषवादी (मायावादी) शंकराचार्य ने अपने गीता– भाष्य में स्वीकार किया है कि कृष्ण भगवान् हैं, किन्तु उनके अनुयायी इसे स्वीकार नहीं करते, क्योंकि भले ही किसी को निर्विशेष ब्रह्म की दिव्य अनुभूति क्यों न हो, कृष्ण को जान पाना अत्यन्त कठिन है।

कृष्ण भगवान समस्त कारणों के करण, आदि पुरुष गोविन्द हैं। ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्द विग्रहः। अनादिरादिर्गोविन्दः सर्वकारणकारणम्। अभक्तों के लिए उन्हें जान पाना अत्यन्त कठिन है। यद्यपि अभक्तगण यह घोषित करते हैं कि भक्ति का मार्ग सुगम है, किन्तु वे इस पर चलते नहीं। यदि भक्तिमार्ग इतना सुगम है जितना अभक्तगण कहते हैं तो फिर वे कठिन मार्ग को क्यों ग्रहण करते हैं? वास्तव में भक्तिमार्ग सुगम नहीं है। भक्ति के ज्ञान में हीन अनधिकारी लोगों द्वारा ग्रहण किया जाने वाला तथा कथित भक्तिमार्ग भले ही सुगम हो, किन्तु जब विधि-विधानों के अनुसार दृढ़तापूर्वक इसका अभ्यास किया जाता है तो मीमांसक तथा दार्शनिक इस मार्ग से च्युत हो जाते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मनुष्याणाम् – मनुष्यों में से; सहस्रेषु – हजारों; कश्चित् – कोई एक; यतति – प्रयत्न करता है; सिद्धये – सिद्धि के लिए; यतताम् – इस प्रकार प्रयत्न करने वाले; अपि – निस्सन्देह; सिद्धानाम् – सिद्ध लोगों में से; कश्चित् – कोई एक; माम् – मुझको; वेत्ति – जानता है; तत्त्वतः – वास्तव में।

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