श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 277

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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ध्यानयोग
अध्याय 6 : श्लोक-19

यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता।
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः॥[1]

भावार्थ


जिस प्रकार वायुरहित स्थान में दीपक हिलता-डुलता नहीं, उसी तरह जिस योगी का मन वश में होता है, वह आत्मतत्त्व के ध्यान में सदैव स्थिर रहता है।

तात्पर्य

कृष्णभावनाभावित व्यक्ति अपने आराध्य देव के चिन्तन में उसी प्रकार अविचलित रहता है जिस प्रकार वायुरहित स्थान में एक दीपक रहता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यथा – जिस तरह; दीप – दीपक; निवात-स्थः – वायुरहित स्थान में; न – नहीं; इङगते – हिलता डुलता; सा – यह; उपमा – तुलना; स्मृता – मानी जाती है; योगिनः – योगी की; यत-चित्तस्य – जिसका मन वश में है; युञ्जतः – निरन्तर संलग्न; योगम् – ध्यान में; आत्मनः – अध्यात्म में।

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