श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 412

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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परम गुह्य ज्ञान
अध्याय-9 : श्लोक-25


यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।[1]

भावार्थ

जो देवताओं की पूजा करते हैं, वे देवताओं के बीच जन्म लेंगे, जो पितरों को पूजते हैं, वे पितरों के पास जाते हैं, जो भूत-प्रेतों की उपासना करते हैं, वे उन्हीं के बीच जन्म लेते हैं और जो मेरी पूजा करते हैं वे मेरे साथ निवास करते हैं।

तात्पर्य

यदि कोई चन्द्रमा, सूर्य या अन्य लोक को जाना चाहता है तो वह अपने गन्तव्य को बताये गये विशिष्ट वैदिक नियमों का पालन करके प्राप्त कर सकता है। इनका विशद वर्णन वेदों के कर्मकाण्ड अंश दर्शपौर्णमासी में हुआ हा, जिसमें विभिन्न लोकों में स्थित देवताओं के लिए विशिष्ट पूजा का विधान है। इसी प्रकार विशिष्ट यज्ञ करके पितृलोक प्राप्त किया जा सकता है। पिशाच पूजा को काला जादू कहते हैं। अनेक लोग इस काले जादू का अभ्यास करते हैं और सोचते हैं कि यह अध्यात्म है, किन्तु ऐसे कार्यकलाप नितान्त भौतिकतावादी हैं। इसी तरह शुद्ध भक्त केवल भगवान की पूजा करके निस्सन्देह वैकुण्ठलोक तथा कृष्णलोक की प्राप्ति करता है। इस श्लोक के माध्यम से यह समझना सुगम है कि जब देवताओं की पूजा करके कोई स्वर्ग प्राप्त कर सकता है, तो फिर शुद्ध भक्त कृष्ण या विष्णु के लोक क्यों नहीं प्राप्त कर सकता? दुर्भाग्यवश अनेक लोगों को कृष्ण तथा विष्णु के दिव्यलोकों की सूचना नहीं है, अतः न जानने के कारण वे नीचे गिर जाते हैं। यहाँ तक निर्विशेषवादी भी ब्रह्मज्योति से नीचे गिरते हैं। इसीलिए कृष्ण भावनामृत आन्दोलन इस दिव्य सूचना को समूचे मानव समाज में वितरित करता है कि केवल हरे कृष्ण मन्त्र के जाप से ही मनुष्य सिद्ध हो सकता है और भगवद्धाम को वापस जा सकता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यान्ति–जाते हैं; देव-व्रताः–देवताओं के उपासक; देवान्–देवताओं के पास; पितृृन्–पितरों के पास; यान्ति–जाते हैं; पितृ-व्रताः–पितरों के उपासक; भूतानि–भूत-प्रेतों के पास; यान्ति–जाते हैं; भूत-इज्याः–भूत-प्रेतों के उपासक; यान्ति–जाते हैं; मत्–मेरे; याजिनः–भक्तगण; अपि–लेकिन; माम्–मेरे पास।

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