श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
उपसंहार- संन्यास की सिद्धि
अध्याय 18 : श्लोक-40
न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुन: ।
इस लोक में, स्वर्ग लोकों में या देवताओं के मध्य में कोई भी ऐसा व्यक्ति विद्यमान नहीं है, जो प्रकृति के तीन गुणों से मुक्त हो। भगवान इस श्लोक में समग्र ब्रह्माण्ड में प्रकृति के तीन गुणों के प्रभाव का संक्षिप्त विवरण दे रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ न= नहीं; तत्= वह; अस्ति= है; पृथिव्याम्= पृथ्वी पर; वा= अथवा; दिवि= उच्चतर लोकों में; देवेषु= देवताओं में; वा= अथवा; पुनः= फिर; सत्त्वम्= अस्तित्व; प्रकृति-जैः= प्रकृति से उत्पन्न; मुक्तम्= मुक्त; यत्= जो; एभिः= इनके प्रभाव से; स्यात्= हो; त्रिभिः= तीन; गुणैः= गुणों से।
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