श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 134

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

Prev.png

कर्मयोग
अध्याय 3 : श्लोक-10

सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्तिवष्टकामधुक्॥[1]

भावार्थ

सृष्टि के प्रारम्भ में समस्त प्राणियों के स्वामी (प्रजापति) ने विष्णु के लिए यज्ञ सहित मनुष्यों तथा देवताओं की सन्ततियों को रचा और उनसे कहा, “तुम इस यज्ञ से सुखी रहो क्योंकि इसके करने से तुम्हें सुखपूर्वक रहने तथा मुक्ति प्राप्त करने के लिए समस्त वांछित वस्तुएँ प्राप्त हो सकेंगी।”

तात्पर्य

प्राणियों के स्वामी (विष्णु) द्वारा भौतिक सृष्टि की रचना बद्धजीवों के लिए भगवद्धाम वापस जाने का सुअवसर है। इस सृष्टि के सारे जीव प्रकृति द्वारा बद्ध हैं क्योंकि उन्होंने श्रीभगवान् विष्णु या कृष्ण के साथ सम्बन्ध को भुला दिया है। इस शाश्वत सम्बन्ध को समझने में वैदिक नियम हमारी सहायता के लिए हैं, जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है– वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यः। भगवान् का कथन है कि वेदों का उद्देश्य मुझे समझना है। वैदिक स्तुतियों में कहा गया है– पतिं विश्वस्यात्मेश्वरम्। अतः जीवों के स्वामी (प्रजापति) श्रीभगवान् विष्णु हैं।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सह – के साथ; यज्ञाः – यज्ञों; प्रजाः – सन्ततियों; सृष्ट्वा – रच कर; पुरा – प्राचीन काल में; उवाच – कहा; प्रजापतिः – जीवों के स्वामी ने; अनेन – इससे; प्रसविष्यध्वम् – अधिकाधिक समृद्ध होओ; एषः – यह; वः – तुम्हारा; अस्तु – होए; इष्ट – समस्त वांछित वस्तुओं का; काम-धुक् – प्रदाता।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः