श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-53
नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया। भावार्थ तात्पर्य |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ न - कभी नहीं; अहम् - मैं; वेदैः - वेदाध्ययन से; न - कभी नहीं; तपसा - कठिन तपस्या द्वारा; न - कभी नहीं; दानेन - दान से; च - भी; इज्यया - पूजा से; शक्यः - संभव है; एवम् -विधः - इस प्रकार से; द्रष्टुम् - देख पाना; दृष्टवान् - देख रहे; असि - तुम हो; माम् - मुझको; यथा - जिस प्रकार।
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