श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 610

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-6


तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् ।
सुखसग्नङेन बध्नाति ज्ञानसग्ङेन चानघ ॥6॥[1]

भावार्थ

हे निष्पाप! सतोगुण अन्य गुणों की अपेक्षा अधिक शुद्ध होने के कारण प्रकाश प्रदान करने वाला और मनुष्यों को सारे पाप कर्मों से मुक्त करने वाला है। जो लोग इस गुण में स्थित होते हैं, वे सुख तथा ज्ञान के भाव से बँध जाते हैं।

तात्पर्य

प्रकृति द्वारा बद्ध किये गये जीव कई प्रकार के होते हैं। कोई सुखी है और कोई अत्यन्त कर्मठ है, तो दूसरा असहाय है। इस प्रकार के मनोभाव ही प्रकृति में जीव की बद्धावस्था के कारणस्वरूप हैं। भगवद्गीता के इस अध्याय में इसका वर्णन हुआ है कि वे किस प्रकार भिन्न-भिन्न प्रकार से बद्ध हैं। 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तत्र= वहाँ; सत्त्वम्= सतोगुण; निर्मलत्वात्= भौतिक जगत् में शुद्धतम होने के कारण; प्रकाशकम्= प्रकाशित करता हुआ; अनामयम्= किसी पापकर्म के बिना; सुख= सुख की; संगेन= संगति के द्वारा; बध्नाति= बाँधता है; ज्ञान= ज्ञान की; संगेन= संगति से; च= भी; अनघ= हे पापरहित।

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