श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 505

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-39

वायुर्यमोSग्निर्वरुणः शशाङ्कः
प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेSस्तु सहस्रकृत्वः
पुनश्च भूयोSपि नमो नमस्ते।।[1]

भावार्थ

आप वायु हैं तथा परम नियन्ता हैं। आप अग्नि हैं, जल हैं तथा चन्द्रमा हैं। आप आदि ब्रह्मा हैं और आप प्रपितामह हैं। अतः आपको हजार बार नमस्कार है और पुनः नमस्कार है।

तात्पर्य

भगवान् को वायु कहा गया है, क्योंकि वायु सर्वव्यापी होने के कारण समस्त देवताओं का मुख्य अधिष्ठाता है। अर्जुन कृष्ण को प्रपितामह (परबाबा) कहकर सम्बोधित करता है, क्योंकि वे विश्व के प्रथम जीव ब्रह्मा के पिता हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वायुः - वायु; यमः - नियन्ता; अग्निः - अग्नि; वरुणः - जल; शश-अङ्कः - चन्द्रमा; प्रजापतिः - ब्रह्मा; त्वम्- आप; प्र-पितामहः - परबाबा; च - तथा; नमः - मेरा नमस्कार; नमः - पुनः नमस्कार; ते - आपको; अस्तु - हो; सहस्र-कृत्वः- हजार बार; पुनः-च - तथा फिर; भूयः - फिर; अपि - भी; नमः - नमस्कार; नमः-ते - आपको मेरा नमस्कार है।

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