श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 618

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-13


अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च ।
तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन ॥13॥[1]

भावार्थ

जब तमोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो हे कुरुपुत्र! अँधेरा, जड़ता, प्रमत्तता तथा मोह का प्राकट्य होता है।

तात्पर्य

जहाँ प्रकाश नहीं होता, वहाँ ज्ञान अनुपस्थित रहता है। तमोगुणी व्यक्ति किसी नियम में बँधकर कार्य नहीं करता। वह अकारण ही अपनी सनक के अनुसार कार्य करना चाहता है। यद्यपि उसमें कार्य करने की क्षमता होती है, किन्तु वह परिश्रम नहीं करता। यह मोह कहलाता है। यद्यपि चेतना रहती है, लेकिन जीवन निष्क्रिय रहता है। ये तमोगुण के लक्षण हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अप्रकाशः= अंधेरा; अप्रवृत्तिः= निष्क्रियता; च= तथा; प्रमादः= पागलपन; मोहः= मोह; एव= निश्चय ही; च= भी; तमसि= तमोगुण; एतानि= ये; जायन्ते= प्रकट होते हैं; विवृद्धे= बढ़ जाने पर; कुरु नन्दन= हे कुरुपुत्र।

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