श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 625

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-18


ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसा: ।
जघन्यगुणवृत्तिस्थाअधो गच्छन्ति तामसा: ॥18॥[1]

भावार्थ

सतोगुणी व्यक्ति क्रमशः उच्च लोकों को ऊपर जाते हैं, रजोगुणी इसी पृथ्वीलोक में रह जाते हैं, और जो अत्यन्त गर्हित तमोगुण में स्थित हैं, वे नीचे नरक लोकों को जाते हैं।

तात्पर्य

इस श्लोक में तीनों गुणों के कर्मों के फल को स्पष्ट रूप से बताया गया है। ऊपर के लोकों या स्वर्गलोकों में, प्रत्येक व्यक्ति अत्यन्त उन्नत होता है। जीवों में जिस मात्रा में सतोगुण का विकास होता है, उसी के अनुसार उसे विभिन्न स्वर्ग-लोकों में भेजा जाता है। सर्वोच्च-लोक सत्य-लोक या ब्रह्मलोक है, जहाँ इस ब्रह्माण्ड के प्रधान व्यक्ति, ब्रह्मा जी निवास करते हैं। हम पहले ही देख चुके हैं कि ब्रह्मलोक में जिस प्रकार जीवन की आश्चर्यजनक परिस्थिति है, उसका अनुमान करना कठिन है। तो भी सतोगुण नामक जीवन की सर्वोच्च अवस्था हमें वहाँ तक पहुँचा सकती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऊर्ध्‍वम= ऊपर; गच्छन्ति= जाते हैं; सत्त्व-स्थाः= जो सतोगुण में स्थित हैं; मध्ये= मध्य में; तिष्ठन्ति= निवास करते हैं; राजसाः= रजोगुणी; जघन्य= गर्हित; गुण= गण; वृत्ति-स्थाः= जिनकी वृत्तियाँ या व्यवसाय; अधः= नीचे, निम्नः गच्छन्ति= जाते हैं; तामसाः= तमोगुणी लोग।

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