श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-17
ऐसा संभव भी नहीं है, क्योंकि वह रजोगुण में स्थित है। यदि कोई रंचमात्र भी सुख चाहता है, तो धन उसकी सहायता नहीं कर सकता, उसे कृष्णभावनामृत के अभ्यास द्वारा अपने आपको सतोगुण सतोगुण में स्थित करना होगा। जब कोई रजोगुण में रत रहता है, तो वह मानसिक रूप से ही अप्रसन्न नहीं रहता अपितु उसकी वृत्ति तथा उसका व्यवसाय भी अत्यन्त कष्टकारक होते हैं। उसे अपनी मर्यादा बनाये रखने के लिए अनेकानेक योजनाएँ बनानी होती हैं। यह सब कष्टकारक है। तमोगुण में लोग पागल (प्रपत्त) हो जाते हैं। अपनी परिस्थितियों से ऊब कर के मद्य-सेवन की शरण ग्रहण करते हैं और इस प्रकार वे अज्ञान के गर्त में अधिकाधिक गिरते हैं। जीवन में उनका भविष्य-जीवन अन्धकारमय होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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