श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 457

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्री भगवान का ऐश्वर्य
अध्याय-10 : श्लोक-26


अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।।[1]

भावार्थ

मैं समस्त वृक्षों में अश्वत्थ हूँ और देवर्षियों में नारद हूँ। मैं गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ।

तात्पर्य

अश्वत्थ वृक्ष सबसे ऊँचा तथा सुन्दर वृक्ष है, जिसे भारत में लोग नित्यप्रति नियमपूर्वक पूजते हैं। देवताओं में नारद विश्वभर में सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं और पूजित होते हैं। इस प्रकार वे भक्त के रूप में कृष्ण के स्वरूप हैं। गन्धर्वलोक ऐसे निवासियों से पूर्ण है, जो बहुत अच्छा गाते हैं, जिनमें से चित्ररथ सर्वश्रेष्ठ गायक है। सिद्ध पुरुषों में से देवहुति के पुत्र कपिल मुनि कृष्ण के प्रतिनिधि हैं। वे कृष्ण के अवतार माने जाते हैं। इसका दर्शन भागवत में उल्लिखित है। बाद में भी एक अन्य कपिल प्रसिद्ध हुए, किन्तु वे नास्तिक थे, अतः इन दोनों में महान अन्तर है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अश्वत्थः-अश्वत्थ वृक्ष; सर्व-वृक्षाणाम्-सारे वृक्षों में; देव-ऋषिणाम्-समस्त देवर्षियों में; च-तथा; नारदः-नारद; गन्धर्वाणाम्-गन्धर्वलोक के वासियों में; चित्ररथः-चित्ररथ; सिद्धानाम्-समस्त सिद्धि प्राप्त हुओं में; कपिलः-मुनिः-कपिल मुनि।

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