श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
परम गुह्य ज्ञान
अध्याय-9 : श्लोक-15
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते।
अन्य लोग जो ज्ञान के अनुशीलन द्वारा यज्ञ में लगे रहते हैं, वे भगवान की पूजा उनके अद्वय रूप में, विविध रूपों में तथा विश्व रूप में करते हैं।
यह श्लोक पिछले श्लोकों का सारांश है। भगवान अर्जुन को बताते हैं कि जो विशुद्ध कृष्णभावनामृत में लगे रहते हैं और कृष्ण के अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं जानते, वे महात्मा कहलाते हैं। तो भी कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो वास्तव में महात्मा पद को प्राप्त नहीं होते, किन्तु वे भी विभिन्न प्रकारों से कृष्ण की पूजा करते हैं। इनमें से कुछ का वर्णन आर्त, अर्थार्थी, ज्ञानी तथा जिज्ञासु के रूप में किया जा चुका है। किन्तु फिर भी कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो इनसे भी निम्न होते हैं। इन्हें तीन कोटियों में रखा जाता है–
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ज्ञान-यज्ञेन–ज्ञान के अनुशीलन द्वारा; च–भी; अपि–निश्चय ही; अन्य–अन्य लोग; यजन्तः–यज्ञ करते हुए; माम्–मुझको; उपासते–पूजते हैं; एकत्वेन–एकान्त भव से ; पृथक्त्वेन–द्वैतभाव से; बहुधा–अनेक प्रकार से; विश्वतः मुखम्–विश्व रूप में।
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