श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 721

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्रद्धा के विभाग
अध्याय 17 : श्लोक-22


अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते ।
असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम् ॥22॥[1]

भावार्थ

तथा जो दान किसी अपवित्र स्थान में, अनुचित समय में, किसी अयोग्य व्यक्ति को या बिना समुचित ध्यान तथा आदर से दिया जाता है, वह तामसी कहलाता है।

तात्पर्य

यहाँ पर मद्यपान तथा द्यूतक्रीड़ा में व्यसनी के लिए दान देने को प्रोत्साहन नहीं दिया गया। ऐसा दान तामसी है। ऐसा दान लाभदायक नहीं होता, वरन् इससे पापी पुरुषों को प्रोत्साहन मिलता है। इसी प्रकार, यदि बिना सम्मान तथा ध्यान दिये किसी उपयुक्त व्यक्ति को दान दिया जाय, तो वह भी तामसी है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अदेश= अशुद्ध स्थान; काले= तथा अशुद्ध समय में; यत्= जो; दानम्= दान; अपात्रेभ्यः= अयोग्य व्यक्तियों को; च= भी; दीयते= दिया जाता है; असत-कृतम्= सम्मान के बिना; अवज्ञातम्= समुचित ध्यान दिये बिना; तत्= वह; तामसम्= तमोगुणी; उदाहृतम्= कहा जाता है।

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