श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 496

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-28

यथा नदीनां बहवोSम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति।
तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति।।28॥[1]

भावार्थ

जिस प्रकार नदियों की अनेक तरंगें समुद्र में प्रवेश करती हैं, उसीप्रकार ये समस्त महान योद्धा भी आपके प्रज्जवलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं।

अध्याय-11 : श्लोक-29

यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका-स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः।।29॥[2]

भावार्थ

मैं समस्त लोगों को पूर्ण वेग से आपके मुख में उसी प्रकार प्रविष्टहोते देख रहा हूँ, जिस प्रकार पतिंगे अपने विनाश के लिए प्रज्जवलित अग्नि में कूदपड़ते हैं।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यथा – जिस प्रकार; नदीनाम् – नदियों की; बहवः – अनेक; अम्बु-वेगाः –जल की तरंगें; समुद्रम् – समुद्र; एव – निश्चय ही; अभिमुखाः – की ओर; द्रवन्ति –दौड़ती हैं; तथा – उसी प्रकार से; तव – आपके; अभी – ये सब; नर-लोक-वीराः – मानवसमाज के राजा; विशन्ति – प्रवेश कर रहे हैं; वक्त्राणि – मुखों में; अभिविज्वलन्ति– प्रज्जवलित हो रहे हैं।
  2. यथा – जिस प्रकार; प्रदीप्तम् – जलती हुई; ज्वलनम् – अग्नि में; पतङगाः – पतिंगे, कीड़े मकोड़े; विशन्ति – प्रवेश करते हैं; नाशाय – विनाश के लिए; समृद्ध – पूर्ण; वेगाः – वेग; तथा एव – उसी प्रकार से; नाशाय – विनाश के लिए; विशन्ति – प्रवेश कर रहे हैं; लोकाः – सारे लोग; एव – आपके; अपि – भी; वक्त्राणि – मुखों में; समृद्ध-वेगाः – पूरे वेग से।

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