श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-28
यथा नदीनां बहवोSम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति। भावार्थ अध्याय-11 : श्लोक-29
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः। भावार्थ
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यथा – जिस प्रकार; नदीनाम् – नदियों की; बहवः – अनेक; अम्बु-वेगाः –जल की तरंगें; समुद्रम् – समुद्र; एव – निश्चय ही; अभिमुखाः – की ओर; द्रवन्ति –दौड़ती हैं; तथा – उसी प्रकार से; तव – आपके; अभी – ये सब; नर-लोक-वीराः – मानवसमाज के राजा; विशन्ति – प्रवेश कर रहे हैं; वक्त्राणि – मुखों में; अभिविज्वलन्ति– प्रज्जवलित हो रहे हैं।
- ↑ यथा – जिस प्रकार; प्रदीप्तम् – जलती हुई; ज्वलनम् – अग्नि में; पतङगाः – पतिंगे, कीड़े मकोड़े; विशन्ति – प्रवेश करते हैं; नाशाय – विनाश के लिए; समृद्ध – पूर्ण; वेगाः – वेग; तथा एव – उसी प्रकार से; नाशाय – विनाश के लिए; विशन्ति – प्रवेश कर रहे हैं; लोकाः – सारे लोग; एव – आपके; अपि – भी; वक्त्राणि – मुखों में; समृद्ध-वेगाः – पूरे वेग से।
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