श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 772

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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उपसंहार- संन्यास की सिद्धि
अध्याय 18 : श्लोक-43

शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम् ।
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम् ॥43॥[1]

भावार्थ

वीरता, शक्ति, संकल्प, दक्षता, युद्ध में धैर्य, उदारता तथा नेतृत्व- ये क्षत्रियों के स्वाभाविक गुण हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शौर्यम्= वीरता; तेजः= शक्ति; धृतिः= संकल्प, धैर्य; दाक्ष्यम्= दक्षता; युद्धे= युद्ध में; च= तथा; अपि= भी; अपलायनम्= विमुख न होना; दानम्= उदारता; ईश्वर= नेतृत्व का; भावः= स्वभाव; च= तथा; क्षात्रम्= क्षत्रिय का; कर्म= कर्तव्य; स्वभाव-जम्= स्वभाव से उत्पन्न, स्वाभाविक।

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