श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 661

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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पुरुषोत्तम योग
अध्याय 15 : श्लोक-19


यो मामेवमसंमूढ़ो जानाति पुरुषोत्तमम् ।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ॥19॥[1]

भावार्थ

जो कोई भी मुझे संशयरहित होकर पुरुषोत्तम भगवान के रूप में जानता है, वह सब कुछ जानने वाला है। अतएव हे भरतपुत्र! वह व्यक्ति मेरी भक्ति में रत होता है।

तात्पर्य

जीव तथा भगवान की स्वाभाविक स्थिति के विषय में अनेक दार्शनिक ऊहापोह करते हैं। इस श्लोक में भगवान स्पष्ट बताते हैं कि जो भगवान कृष्ण को परम पुरुष के रूप में जानता है, वह सारी वस्तुओं का ज्ञाता है। अपूर्ण ज्ञाता परम सत्य के विषय के केवल चिन्तन करता जाता है, जबकि पूर्ण ज्ञाता समय का अपव्यय किये बिना सीधे कृष्णभावनामृत में लग जाता है, अर्थात भगवान की भक्ति करने लगता है। सम्पूर्ण भगवद्गीता में पग-पग पर इस तथ्य पर बल दिया गया है। फिर भी भगवद्गीता के ऐसे अनेक कट्टर भाष्यकार हैं, जो परमेश्वर तथा जीव को एक ही मानते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यः= जो; माम्= मुझको; एवम्= इस प्रकार; असम्मूढः= संशयरहित; जानाति= जानता है; पुरुष= उत्तमम्= भगवान; सः= वह; सर्व-वित्= सब कुछ जानने वाला; भजति= भक्ति करता है; माम्= मुझको; सर्व-भावेन= सभी प्रकार से; भारत= हे भरतपुत्र।

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