श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 518

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

Prev.png

विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-52

भगवद्गीता[1] में इसकी पुष्टि हुई है- अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रीतम् - जो लोग उपहास करते हैं, वे उन्हें दृश्य नहीं होते। जैसा कि ब्रह्मसंहिता में तथा स्वयं कृष्ण द्वारा भगवद्गीता में पुष्टि हुई है , कृष्ण का शरीर सच्चिदानन्द स्वरूप है। उनका शरीर कभी भी भौतिक शरीर जैसा नहीं होता। किन्तु जो लोग भगवद्गीता या इसी प्रकार के वैदिक शास्त्रों को पढ़कर कृष्ण का अध्ययन करते हैं, उनके लिए कृष्ण समस्या बने रहते हैं। जो भौतिक विधि का प्रयोग करता है उसके लिए कृष्ण एक महान ऐतिहासिक पुरुष तथा अत्यन्त विद्वान चिन्तक हैं, यद्यपि वे सामान्य व्यक्ति हैं और इतने शक्तिमान होते हुए भी उन्हें भौतिक शरीर धारण करना पड़ा। अन्ततोगत्वा वे परमसत्य को निर्विशेष मानते हैं, अतः वे सोचते हैं कि भगवान् ने अपना निराकार रूप से ही साकार रूप धारण किया। परमेश्वर के विषय में ऐसा अनुमान भौतिकतावादी है। दूसरा अनुमान भी काल्पनिक है। जो लोग ज्ञान की खोज में हैं, वे भी कृष्ण का चिन्तन करते हैं और उन्हें उनके विश्वरूप से कम महत्त्वपूर्ण मानते हैं इस प्रकार कुछ लोग सोचते हैं कि अर्जुन के समक्ष कृष्ण का जो रूप प्रकट हुआ था, वह उनके साकार रूप से अधिक महत्त्वपूर्ण है। उनके अनुसार कृष्ण का साकार रूप काल्पनिक है। उनका विश्वास है कि परमसत्य व्यक्ति नहीं है। किन्तु भगवद्गीता के चतुर्थ अध्याय में दिव्य विधि का वर्णन है और वह कृष्ण के विषय में प्रामाणिक व्यक्तियों से श्रवण करने की है यही वास्तविक वैदिक विधि है और जो लोग सचमुच वैदिक परम्परा में है, वे किसी अधिकारी से ही कृष्ण के विषय में श्रवण करते हैं और बारम्बार श्रवण करने से कृष्ण उनके प्रिय हो जाते हैं।

जैसा कि हम कई बार बता चुके हैं कि कृष्ण अपनी योगमाया शक्ति से आच्छादित हैं। उन्हें हर कोई नहीं देख सकता। वही उन्हें देख पाता है, जिसके समक्ष वे प्रकट होते हैं। इसकी पुष्टि वेदों में हुई है , किन्तु जो शरणागत हो चुका है, वह परमसत्य को सचमुच समझ पाता है। निरन्तर कृष्णभावनामृत से तथा कृष्ण की भक्ति से अध्यात्मिक आँखें खुल जाती हैं और वह कृष्ण को प्रकट रूप में देख सकता है। ऐसा प्राकट्य देवताओं तक के लिए दुर्लभ है, अतः वे भी उन्हें नहीं समझ पाते और उनके द्विभुज रूप के दर्शन की ताक में रहते हैं। निष्कर्ष यह निकला कि यद्यपि कृष्ण के विश्वरूप का दर्शन कर पाना अत्यन्त दुर्लभ है और हर कोई ऐसा नहीं कर सकता, किन्तु उनके श्यामसुंदर रूप को समझ पाना तो और भी कठिन है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (9.11)

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः