श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 652

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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पुरुषोत्तम योग
अध्याय 15 : श्लोक-12


इस श्लोक से हम यह समझ सकते हैं कि सूर्य सम्पूर्ण सौर मण्डल को प्रकाशित कर रहा है। ब्रह्माण्ड अनेक हैं और सौरमण्डल भी अनेक हैं। सूर्य, चन्द्रमा तथा लोक भी अनेक हैं, लेकिन प्रत्येक ब्रह्माण्ड में केवल एक सूर्य हैं भगवद्गीता में[1] कहा गया है कि चन्द्रमा भी एक नक्षत्र[2]। सूर्य का प्रकाश परमेश्वर के आध्यात्मिक आकाश में आध्यात्मिक तेज के कारण है। सूर्यउदय के साथ ही मनुष्य के कार्यकलाप प्रारम्भ हो जाते हैं। वे भोजन पकाने के लिये अग्नि जलाते हैं फैक्ट्रियाँ चलाने के लिये अग्नि जलाते हैं। अग्नि सहायता से अनेक कार्य किये जाते हैं। अतएव सूर्यउदय, अग्नि तथा चन्द्रमा की चाँदनी जीवों को अत्यन्त सुहावने लगते हैं। उनकी सहायता के बिना कोई जीव नहीं रह सकता है।

अतएव यदि मनुष्य यह जान ले कि सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि का प्रकाश तथा तेज भगवान श्रीकृष्ण अद्भुत हो रहा है, तो उसमें कृष्ण भावनामृत का सूत्रपात हो जाता है। चन्द्रमा के प्रकाश सारी वनस्पतियाँ पोषित होती हैं। चन्द्रमा का प्रकाश इतना आनन्द प्रद है कि लोग सरलता से समझ सकते हैं कि वे भगवान कृष्ण की कृपा से ही जी रहे हैं। उनकी कृपा के बिना न तो सूर्य होगा, न चन्द्रमा, न अग्नि, और सूर्य चन्द्रमा तथा अग्नि के बिना हमारा जीवित रहना असम्भव है। बद्धजीव में कृष्णभावनामृत जगाने वाली ये ही कतिपय विचार हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 10.21
  2. नक्षत्राणामहंशशी

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