श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-6
सारी कठिनाई यह है कि जब मनुष्य सतोगुण में स्थित होता है, तो उसे ऐसा अनुभव होता है कि वह ज्ञान में आगे है और अन्यों की अपेक्षा श्रेष्ठ है। इस प्रकार वह बद्ध हो जाता है। इसके उदाहरण वैज्ञानिक तथा दार्शनिक हैं। इनमें से प्रत्येक को अपने ज्ञान का गर्व रहता है और चूँकि वे अपने रहन-सहन को सुधार लेते हैं, अतएव उन्हें भौतिक सुख की अनुभूति होती है। बद्ध जीवन में अधिक सुख का यह भाव उन्हें भौतिक प्रकृति के गुणों से बाँध देता है। अतएव वे सतोगुण में रहकर कर्म करने के प्रति आकृष्ट होते हैं। और जब तक इस प्रकार कर्म करते रहने का आकर्षण बना रहता है, तब तक उन्हें किसी न किसी प्रकार का शरीर धारण करना होता है। इस प्रकार उनकी मुक्ति की या बैकुण्ठलोक जाने की कोई संम्भावना नहीं रह जाती। वे बारम्बार दार्शनिक, वैज्ञानिक या कवि बनते रहते हैं और बारम्बार जन्म-मृत्यु के उन्हीं दोषों में बँधते रहते हैं। लेकिन माया-मोह के कारण वे सोचते हैं कि इस प्रकार का जीवन आनन्दप्रद है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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