श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 482

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-8

ऐसे बालक यह नहीं जानते कि कृष्ण भगवान हैं। वे उन्हें अपना निजी मित्र मानते हैं। अतः शुकदेव गोस्वामी यह श्लोक सुनाते हैं-

इत्थं सतां ब्रह्म-सुखानुभूत्या
दास्यं गतानां परदैवतेन।
मायाश्रितानां नरदारकेण
साकं विजह्रु कृत-पुण्य-पुञ्जाः।।

“यह वह परमपुरुष है, जिसे ऋषिगण निर्विशेष ब्रह्म करके मानते हैं, भक्तगण भगवान मानते हैं और सामान्यजन प्रकृति से उत्पन्न हुआ मानते हैं। ये बालक, जिन्होंने अपने पूर्वजन्मों में अनेक पुण्य किये हैं, अब उसी भगवान के साथ खेल रहे हैं।”[1]

तथ्य तो यह है की भक्त विश्वरूप को देखने का इच्छुक नहीं रहता, किन्तु अर्जुन कृष्ण के कथनों की पुष्टि करने के लिए विश्वरूप का दर्शन करना चाहता था, जिससे भविष्य में लोग यह समझ सकें की कृष्ण न केवल सैद्धान्तिक या दार्शनिक रूप से अर्जुन के समक्ष प्रकट हुए, अपितु साक्षात रूप में प्रकट हुए थे। अर्जुन को इसकी पुष्टि करनी थी, क्योंकि अर्जुन से ही परम्परा-पद्धति प्रारम्भ होती है। जो लोग वास्तव में भगवान को समझना चाहते हैं और अर्जुन के पदचिह्नों का अनुसरण करना चाहते हैं, उन्हें यह जान लेना चाहिए कि कृष्ण न केवल सैद्धान्तिक रूप में, अपितु वास्तव में अर्जुन के समक्ष परमेश्वर के रूप में प्रकट हुए।

भगवान ने अर्जुन को अपना विश्वरूप देखने के लिए आवश्यक शक्ति प्रदान कि, क्योंकि वे जानते थे की अर्जुन इस रूप को देखने के लिए विशेष इच्छुक न था, जैसा कि हम पहले बतला चुके हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भागवत 10.12.11

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