श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 297

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

Prev.png

ध्यानयोग
अध्याय 6 : श्लोक-40

इस श्लोक का तात्पर्य इस प्रकार है– मानवता के दो विभाग किये जा सकते हैं– नियमित तथा अनियमित। जो लोग अगले जन्म या मुक्ति के ज्ञान के बिना पाशविक इन्द्रियतृप्ति में लगे रहते हैं वे अनियमित विभाग में आते हैं। जो लोग शास्त्रों में वर्णित कर्तव्य के सिद्धान्तों का पालन करते हैं वे नियमित विभाग में वर्गीकृत होते हैं। अनियमित विभाग के संस्कृत तथा असंस्कृत, शिक्षित तथा अशिक्षित, बली तथा निर्बल लोग पाशविक वृत्तियों से पूर्ण होते हैं। उनके कार्य कभी भी कल्याणकारी नहीं होते क्योंकि पशुओं की भाँति आहार, निद्रा, भय तथा मैथुन का भोग करते हुए इस संसार में निरन्तर रहते हैं, जो सदा ही दुखमय है। किन्तु जो लोग शास्त्रीय आदेशों के अनुसार संयमित रहते हैं और इस प्रकार क्रमशः कृष्णभावनामृत को प्राप्त होते हैं, वे निश्चित रूप से जीवन में उन्नति करते हैं।

कल्याण-मार्ग के अनुयायिओं को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है– (1) भौतिक सम्पन्नता का उपभोग करने वाले शास्त्रीय विधि-विधानों के अनुयायी, (3) इस संसार से मुक्ति पाने के लिए प्रयत्नशील लोग तथा (3) कृष्णभावनामृत के भक्त। प्रथम वर्ग के अनुयायियों को पुनः दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है– सकामकर्मी तथा इन्द्रियतृप्ति की इच्छा न करने वाले। सकामकर्मी जीवन के उच्चतर स्तर तक उठ सकते हैं– यहाँ तक कि स्वर्गलोक को जा सकते हैं तो भी इस संसार से मुक्त न होने के करण वे सही ढंग से शुभ मार्ग का अनुगमन नहीं करते। शुभ कर्म तो वे हैं जिनसे मुक्ति प्राप्त हो। कोई भी ऐसा कार्य जो परम आत्म-साक्षात्कार या देहात्मबुद्धि से मुक्ति की ओर उन्मुख नहीं होता वह रंचमात्र भी कल्याणप्रद नहीं होता। कृष्णभावनामृत सम्बन्धी कार्य ही एकमात्र शुभ कार्य है और जो कृष्णभावनामृत के मार्ग पर प्रगति करने के उद्देश्य से स्वेच्छा से समस्त शारीरिक असुविधाओं को स्वीकार करता है वही घोर तपस्या के द्वारा पूर्णयोगी कहलाता है। चूँकि अष्टांगयोग पद्धति कृष्णभावनामृत की चरम अनुभूति के लिए होती है, अतः यह पद्धति भी कल्याणप्रद है, अतः जो कोई इस दिशा में यथाशक्य प्रयास करता है उसे कभी अपने पतन के प्रति भयभीत नहीं होना चाहिए।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः