शुक्र

Disamb2.jpg शुक्र एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- शुक्र (बहुविकल्पी)

शुक्र हिन्दू मान्यताओं और पौराणिक महाकाव्य महाभारत के उल्लेखानुसार दैत्यगुरु शुक्राचार्य का एक अन्य नाम है। असुरों के आचार्य होने के कारण ही इन्हें 'असुराचार्य' कहते थे। 'गो' और 'जयंती' नाम की इनकी दो पत्नियाँ थीं।

  • शुक्राचार्य भृगु ऋषि तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र रूप में ख्यात थे। उनके जन्म का नाम 'शुक्र उशनस' था।
  • पुराणों के अनुसार यह दैत्यों के गुरु तथा पुरोहित थे।
  • कहा जाता है कि भगवान विष्णु के वामनावतार में तीन पग भूमि प्राप्त करने के समय यह राजा बलि की झारी के मुख में जाकर बैठ गए और बलि द्वारा दर्भाग्र से झारी साफ करने की क्रिया में इनकी एक आँख फूट गई। इसीलिए यह 'एकाक्ष' भी कहे जाते थे।
  • आरंभ में शुक्राचार्य ने अंगिरस ऋषि का शिष्यत्व ग्रहण किया, किंतु जब वह अपने पुत्र के प्रति पक्षपात दिखाने लगे, तब इन्होंने शिव की आराधना कर मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की; जिसके बल पर देवासुर संग्राम में असुर अनेक बार जीते।
  • शुक्राचार्य ने 1,000 अध्यायों वाले "बार्हस्पत्य शास्त्र" की रचना की थी।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 108 |


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