श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 792

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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उपसंहार- संन्यास की सिद्धि
अध्याय 18 : श्लोक-57


यदि कोई इस पुस्तक में दिये गये कृष्ण के निर्देश के अनुसार तथा कृष्ण के प्रतिनिधि के मार्गदर्शन में कार्य करता है, तो उसका फल वैसा ही होगा। इस श्लोक में मत्परः शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह सूचित करता है कि मनुष्य जीवन में कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कृष्णभावनावित होकर कार्य करने के अतिरिक्त अन्य कोई लक्ष्य नहीं होता। जब वह इस प्रकार कार्य कर रहा हो तो उसे केवल कृष्ण का ही चिन्तन इस प्रकार से करना चाहिए- ‘‘कृष्ण ने मुझे इस विशेष कार्य को पूरा करने के लिए नियुक्त किया है।’’ और इस तरह कार्य करते हुए उसे स्वाभाविक रूप से कृष्ण का चिन्तन हो आता है।

यही पूर्ण कृष्णभावनामृत है। किन्तु यह ध्यान रहे कि मममाना कर्म करके उसका फल परमेश्वर को अर्पित न किया जाए। इस प्रकार का कार्य कृष्णभावनामृत की भक्ति में नहीं आता। मनुष्य को चाहिए कि कृष्ण के आदेशानुसार कर्म करे। यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात है। कृष्ण का यह आदेश गुरु परम्परा द्वारा प्रामाणिक गुरु से प्राप्त होता है। अतएव गुरु के आदेश को जीवन का मूल कर्तव्य समझना चाहिए। यदि किसी को प्रामाणिक गुरु प्राप्त हो जाता है और वह निर्देशानुसार कार्य करता है, तो कृष्णभावनामय जीवन की सिद्धि सुनिश्चित है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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