श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 376

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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भगवत्प्राप्ति
अध्याय 8 : श्लोक-25-26

धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते।।[1]
शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः।।[2]

भावार्थ

जो योगी धुएँ, रात्रि, कृष्णपक्ष में या सूर्य के दक्षिणायन रहने के छह महीनों में दिवंगत होता है, वह चन्द्रलोक को जाता है, किन्तु वहाँ से पुनः (पृथ्वी पर) चला आता है। वैदिक मतानुसार इस संसार से प्रयाण करने के दो मार्ग हैं– एक प्रकाश का तथा दूसरा अंधकार का। जब मनुष्य प्रकाश के मार्ग से जाता है तो वह वापस नहीं आता, किन्तु अंधकार के मार्ग से जाने वाला पुनः लौटकर आता है।

तात्पर्य

भागवत के तृतीय स्कंध में कपिल मुनि उल्लेख करते हैं कि जो लोग कर्मकाण्ड तथा यज्ञकाण्ड में निपुण हैं, वे मृत्यु होने पर चन्द्रलोक को प्राप्त करते हैं। ये महान आत्माएँ चन्द्रमा पर लगभग 10 हजार वर्षों तक (देवों की गणना से) रहती हैं और सोमरस का पान करते हुए जीवन का आनन्द भोगती हैं। अन्ततोगत्वा वे पृथ्वी पर लौट आती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि चन्द्रमा में उच्चश्रेणी के प्राणी रहते हैं, भले ही हम अपनी स्थूल इन्द्रियों से उन्हें देख न सकें।

आचार्य बल्देव विद्याभूषण ने छान्दोग्य उपनिषद से[3] ऐसा ही विवरण उदधृत किया है। जो अनादि काल से सकाम कर्मों तथा दार्शनिक चिन्तक रहे हैं वे निरन्तर आवगमन करते रहे हैं। वस्तुतः उन्हें परममोक्ष प्राप्त नहीं होता, क्योंकि वे कृष्ण की शरण में नहीं जाते।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. धूमः – धुआँ; रात्रिः – रात; तथा – और; कृष्णः – कृष्णपक्ष; षट्-मासाः – छह मास की अवधि; दक्षिण-अयणम् – जब सूर्य दक्षिण दिशा में रहता है; तत्र – वहाँ; चान्द्र-मसम् – चन्द्रलोक को; ज्योतिः – प्रकाश; योगी – योगी; प्राप्य – प्राप्त करके; निवर्तते – वापस आता है।
  2. शुक्ल – प्रकाश; कृष्णे – तथा अंधकार; गती – जाने के मार्ग; हि – निश्चय ही; एते – ये दोनों; जगतः – भौतिक जगत् का; शाश्वते – वेदों में; मते – मत से; एकया – एक के द्वारा; याति – जाता है; अनावृत्तिम् – न लौटने के लिए; अन्यया – अन्य के द्वारा; आवर्तते – आ जाता है; पुनः – फिर से।
  3. 5.10.3-5

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