श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-12
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता। अर्जुन ने जो कुछ देखा वह अकथ्य था, तो भी संजय धृतराष्ट्र को उस महान दर्शन का मानसिक चित्र उपस्थित करने का प्रयत्न कर रहा है। न तो संजय वहाँ था, न धृतराष्ट्र, किन्तु व्यासदेव के अनुग्रह से संजय सारी घटनाओं को देख सकता है। अतएव इस स्थिति की तुलना वह एक काल्पनिक घटना[2] से कर रहा है, जिससे इसे समझा जा सके। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दिवि – आकाश में; सूर्य – सूर्य का; सहस्रस्य – हजारों; भवेत् – थे; युगपत् – एकसाथ; उत्थिता – उपस्थित; यदि – यदि; भाः – प्रकाश; सदृशी – के समान; सा – वह; स्यात् – हो; भासः – तेज; तस्य – उस; महात्मनः – परम स्वामी का।
- ↑ हजारों सूर्यों
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