श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-6
पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा। भावार्थ यद्यपि अर्जुन कृष्ण का अन्तरंग सखा तथा अत्यन्त विद्वान था, तो भी वह उनके विषय सब कुछ नहीं जानता था। यहाँ पर यह कहा गया है कि इन समस्त रूपों को न तो मनुष्य पूर्व देखा है, न सुना है। अब कृष्ण इन आश्चर्यमय रूपों को प्रकट कर रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पश्य-देखो; आदित्यान्-अदिति के बारहों पुत्रों को; वसून्-आठों वसुओं को; रुद्रान्- रुद्र के ग्यारह रूपों को; अश्विनौ-दो अश्विनी कुमारों को; मरुतः- उञ्चासों मरुतों को; तथा- भी; बहूनि-अनेक; अदृष्ट-देखे हुए; पुर्वाणि- पहले, इसके पूर्व, पश्य-देखो, आश्चर्याणि- समस्त आश्चर्यों को; भारत-हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ।
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