श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 753

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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उपसंहार- संन्यास की सिद्धि
अध्याय 18 : श्लोक-24


यत्तु कामेप्सुना कर्म साहंकारेण वा पुन: ।
क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम् ॥24॥[1]

भावार्थ

लेकिन जो कार्य अपनी इच्छा पूर्ति के निमित्त प्रयास पूर्वक एवं मिथ्या अहंकार के भाव से किया जाता है, वह रजोगुणी कहा जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यत्= जो; तु= लेकिन; काम-ईप्सुना= फल की इच्छा रखने वाले के द्वारा; कर्म= कर्म; स अहंकारेण= अहंकार सहित; वा= अथवा; पुनः= फिर; क्रियते= किया जाता है; बहुल आयासम्= कठिन परिश्रम से; तत्= वह; राजसम्= राजसी; उदाहृतम्= कहा जाता है।

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