श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 691

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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दैवी तथा आसुरी स्वभाव
अध्याय 16 : श्लोक-21


त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: ।
काम:क्रोधस्तथालोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥21॥[1]

भावार्थ

इस नरक के तीन द्वार हैं- काम, क्रोध तथा लोभ। प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि इन्हें त्याग दे, क्योंकि इनसे आत्मा का पतन होता है।'

तात्पर्य

यहाँ पर आसुरी जीवन आरम्भ होने का वर्णन हुआ है। मनुष्य अपने काम को तुष्ट करना चाहता है, किन्तु जब उसे पूरा नहीं कर पाता तो क्रोध तथा लोभ उत्पन्न होता है। जो बुद्धिमान मनुष्य आसुरी योनि में नहीं गिरना चाहता, उसे चाहिए कि वह इन तीनों शत्रुओं का परित्याग कर दे, क्योंकि ये आत्मा का हनन इस हद तक कर देते हैं कि इस भगबन्धन से मुक्ति की सम्भावना नहीं रह जाती।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. त्रिविधम्= तीन प्रकार का; नरकस्य= नरक का; इदम्= यह; द्वारम्= द्वार; नाशनम्= विनाशकारी; आत्मनः= आत्मा का; कामः= काम; क्रोधः= क्रोध; तथा= और; लोभः= लोभ; तस्मात्= अतएव; एतत्= इन; त्रयम्= तीनों को; त्यजेत्= त्याग देना चाहिए।

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