श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 460

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्री भगवान का ऐश्वर्य
अध्याय-10 : श्लोक-29


अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्।।[1]

भावार्थ

अनेक फणों वाले नागों में मैं अनन्त हूँ और जलचरों में वरुणदेव हूँ। मैं पितरों में अर्यमा हूँ तथा नियमों के निर्वाहकों में मैं मृत्युराज यम हूँ।

तात्पर्य

अनेक फणों वाले नागों में अनन्त सबसे प्रधान हैं और इसी प्रकार जलचरों में वरुण देव प्रधान हैं। ये दोनों कृष्ण का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी प्रकार पितृलोक के अधिष्ठाता अर्यमा हैं जो कृष्ण के प्रतिनिधि हैं। ऐसे अनेक जीव हैं जो दुष्टों को दण्ड देते हैं, किन्तु इनमें यम प्रमुख हैं। यम पृथ्वीलोक के निकटवर्ती लोक में रहते हैं। मृत्यु के बाद पापी लोगों को वहाँ ले जाया जाता है और यम उन्हें तरह-तरह का दण्ड देने की व्यवस्था करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अनन्तः-अनन्त; च-भी; अस्मि-हूँ; नागानाम्-फणों वाले सापों में; वरुणः-जल के अधिष्ठाता देवता; यादसाम्-समस्त जलचरों में; अहम्-मैं हूँ; पितृृणाम्-पितरों में; अर्यमा-अर्यमा; च-भी; अस्मि-हूँ; यमः-मृत्यु का नियामक; संयमताम्-समस्त नियमनकर्ताओं में; अहम्-मैं हूँ।

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