श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-52
सुदुर्दर्शमिदं रूपं भावार्थ तात्पर्य |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीभगवान् उवाच - श्रीभगवान् ने कहा; सु-दुर्दर्शम् - देख पाने में अत्यन्त कठिन; इदम् - इस; रूपम् - रूप को; दृष्टवान् असि - जैसा तुमने देखा; यत् - जो; मम - मेरे; देवाः - देवता; अपि - भी; अस्य - इस; रूपस्य - रूप का; नित्यम् - शाश्वत; दर्शन-काङ्क्षिणः - दर्शनाभिलाषी।
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