श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 614

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-9


सत्त्वं सुखे संजयति रज: कर्मणि भारत ।
ज्ञानमावृत्य तु तम: प्रमादे संजयत्युत ॥9॥[1]

भावार्थ

हे भरतपुत्र! सतोगुण मनुष्य को सुख से बाँधता है, रजोगुण सकाम कर्म से बाँधता है और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढक कर उसे पागलपन से बाँधता है।

तात्पर्य

सतोगुणी पुरुष अपने कम्र या बौद्धिक वृत्ति से उसी तरह सन्तुष्ट रहता है, जिस प्रकार दार्शनिक, वैज्ञानिक या शिक्षक अपनी अपनी विद्याओं में निरत रहकर सन्तुष्ट रहते हैं। रजोगुणी व्यक्ति सकाम कर्म में लग सकता है, वह यथा सम्भव धन प्राप्त करके उसे उत्तम कार्यों में व्यय करता है। कभी-कभी वह अस्पताल खोलता है और धर्मार्थ संस्थाओं को दान देता है। ये लक्षण हैं, रजोगुणी व्यक्ति के, लेकिन तमोगुण तो ज्ञान को ढक लेता है। तमोगुण में रहकर मनुष्य जो भी करता है, वह न तो उसके लिए, न किसी अन्य के लिए हितकर होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सत्त्वम्= सतोगुण; सुखे= सुख में; संचयति= बाँधता है; रजः= रजोगुण; कर्मणि= सकाम कर्म में; भारत= हे भरतपुत्र; ज्ञानम्= ज्ञान को; आवृत्य= ढक कर; तु= लेकिन; तमः= तमोगुण; प्रमादे= पागलपन में; संचयति= बाँधता है; उत= ऐसा कहा जाता है।

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