श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
अध्याय-1 : श्लोक-28
अर्जुन उवाच
अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण! इस प्रकार युद्ध कि इच्छा रखने वाले मित्रों तथा सम्बन्धियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुँह सूखा जा रहा है।
यथार्थ भक्ति से युक्त मनुष्य में वे सारे सद्गुण रहते हैं, जो सत्पुरुषों या देवताओं में पाये जाते हैं, जबकि अभक्त अपनी शिक्षा या संस्कृति के द्वारा भौतिक योग्यताओं में चाहे कितना ही उन्नत क्यों न हो इस इश्वरीय गुणों से विहीन होता है, अतः स्वजनों, मित्रों तथा सम्बन्धियों को युद्धभूमि में देखते ही अर्जुन उन सबों के लिए करुणा से अभिभूत हो गया, जिन्होंने परस्पर युद्ध करने का निश्चय किया था। जहाँ तक उसके अपने सैनिकों का सम्बन्ध थे, वह उनके प्रति प्रारम्भ से दयालु था, किन्तु विपक्षी दल के सैनिकों कि आसन्न मृत्यु को देखकर वह उन पर भी दया का अनुभव कर रहा था। और जब वह इस प्रकार सोच रहा था, तो उसके अंगों में कंपन होने लगा और मुँह सूख गया। उन सबको युद्धाभिमुख देखकर उसे आश्चर्य भी हुआ। प्रायः सारा कुटुम्ब, अर्जुन के सगे सम्बन्धी उससे युद्ध करने आये थे। यद्यपि इसका उल्लेख नहीं है, किन्तु तो भी सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि न केवल उसके अंग काँप रहे थे, और मुँख सूख रहा था, अपितु वह दयावश रुदन भी कर रहा था। अर्जुन में ऐसे लक्षण किसी दुर्बलता के कारण नहीं अपितु हृदय की कोमलता के कारण थे जो भगवान् के शुद्ध भक्त का लक्षण है। अतः कहा गया है – |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अर्जुनः उवाच – अर्जुन ने कहा; दृष्ट्वा – देख कर; इमम् – इन सारे; स्वजनम् – सम्बन्धियों को; कृष्ण – हे कृष्ण; युयुत्सुम् – युद्ध की इच्छा रखने वाले; समुपस्थितम् – उपस्थित; सीदन्ति – काँप रहे हैं; मम – मेरे; गात्राणि – शरीर के अंग; मुखम् – मुँह; च – भी; परिशुष्यति – सूख रहा है।
- ↑ भागवत 5.918.12
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज