श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-46
किरीटिनं गदिनं चक्रहस्त- तात्पर्य |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ किरीटिनम् - मुकुट धारण किये; गदिनम् - गदाधारी; चक्रहस्तम् - चक्रधारण किये; इच्छामि - इच्छुक हूँ; त्वाम् - आपको; द्रष्टुम् - देखना; अहम् - मैं; तथा एव - उसी स्थिति में; तेन-एव - उसी; रूपेण - रूप में; चतुःभुजेन - चार हताहों वाले; सहस्र-बाहों - हे हजार भुजाओं वाले; भव - हो जाइये; विश्व-मूर्ते - हे विराट रूप।
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