श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 459

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्री भगवान का ऐश्वर्य
अध्याय-10 : श्लोक-28


आयुधानामहं वज्रं धेनुनामस्मि कामधुक्।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः।।[1]

भावार्थ

मैं हथियारों में वज्र हूँ, गायों में सुरभि, सन्तति उत्पत्ति के कारणों में प्रेम के देवता कामदेव तथा सर्पों में वासुकि हूँ।

तात्पर्य

वज्र सचमुच अत्यन्त शक्तिशाली हथियार है और यह कृष्ण की शक्ति का प्रतिक है। वैकुण्ठलोक में स्थित कृष्णलोक की गाएँ किसी भी समय दुही जा सकती हैं और उनसे जो जितना चाहे उतना दूध प्राप्त कर सकता है। निस्सन्देह इस जगत् में ऐसी गाएँ नहीं मिलती, किन्तु कृष्णलोक में इनके होने का उल्लेख है। भगवान ऐसी अनेक गाएँ रखते हैं, जिन्हें सुरभि कहा जाता है। कहा जाता है कि भगवान् ऐसी गायों के चराने में व्यस्त रहते हैं। कंदर्प काम वासना है, जिससे अच्छे पुत्र उत्पन्न होते हैं। कभी-कभी केवल इन्द्रियतृप्ति के लिए सम्भोग किया जाता है, किन्तु ऐसा संभोग कृष्ण का प्रतिक नहीं है। अच्छी सन्तान की उत्पत्ति के लिए किया गया संभोग कंदर्प कहलाता है और वह कृष्ण का प्रतिनिधि होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आयुधानाम्-हथियारों में; अहम्-मैं हूँ; वज्रम्-वज्र; धेनूनाम्-गायों में; अस्मि-मैं हूँ; काम-धुक्-सुरभि गाय; प्रजनः-संतान, उत्पत्ति का कारण; च-तथा; कन्दर्पः-कामदेव; सर्पाणाम्-सर्पों में; अस्मि-हूँ; वासुकिः-वासुकि।

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