श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 264

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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ध्यानयोग
अध्याय 6 : श्लोक-5

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥[1]

भावार्थ

मनुष्य को चाहिए कि अपने मन की सहायता से अपना उद्धार करे और अपने को नीचे न गिरने दे। यह मन बद्धजीव का मित्र भी है और शत्रु भी।

तात्पर्य

प्रसंग के अनुसार आत्मा शब्द का अर्थ शरीर, मन तथा आत्मा होता है। योगपद्धति में मन तथा आत्मा का विशेष महत्त्व है। चूँकि मन ही योगपद्धति का केन्द्रबिन्दु है, अतः इस प्रसंग में आत्मा का तात्पर्य मन होता है। योगपद्धति का उद्देश्य मन को रोकना तथा इन्द्रियविषयों के प्रति आसक्ति से उसे हटाना है। यहाँ पर इस बात पर बल दिया गया है कि मन को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाय कि वह बद्धजीव को अज्ञान के दलदल से निकाल सके। इस जगत में मनुष्य मन तथा इन्द्रियों के द्वारा प्रभावित होता है। वास्तव में शुद्ध आत्मा इस संसार में इसीलिए फँसा हुआ है क्योंकि मन मिथ्या अहंकार में लगकर प्रकृति के ऊपर प्रभुत्व जताना चाहता है। अतः मन को इस प्रकार प्रशिक्षित करना चाहिए कि वह प्रकृति की तड़क-भड़क से आकृष्ट न हो और इस तरह बद्धजीव की रक्षा की जा सके। मनुष्य को इन्द्रियविषयों से आकृष्ट होकर अपने को पतित नहीं करना चाहिए। जो जितना ही इन्द्रियविषयों के प्रति आकृष्ट होता है वह उतना ही इस संसार में फँसता है। अपने को विरत करने का सर्वोत्कृष्ट साधन यही है कि मन को सदैव कृष्णभावनामृत में निरत रखा जाये। हि शब्द इस बता पर बल देने के लिए प्रयुक्त है अर्थात इसे अवश्य करना चाहिए। अमृतबिन्दु उपनिषद में[2] कहा भी गया है –

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्ष्योः।
बन्धाय विषयासंगो मुक्त्यै निर्विषयं मनः॥

“मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का भी कारण है। इन्द्रियविषयों में लीन मन बन्धन का कारण है और विषयों से विरक्त मन मोक्ष का कारण है।” अतः जो मन निरन्तर कृष्णभावनामृत में लगा रहता है, वही परम मुक्ति का कारण है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उद्धरेत् – उद्धार करे; आत्मना – मन से; आत्मानम् – बद्धजीव को; न – कभी नहीं; आत्मानम् – बद्धजीव को; अवसदायेत् – पतन होने दे; आत्मा – मन; एव – निश्चय ही; हि – निस्सन्देह; आत्मनः – बद्धजीव का; बन्धुः – मित्र; आत्मा – मन; एव – निश्चय ही; रिपुः – शत्रु; आत्मनः – बद्धजीव का।
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