श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 701

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्रद्धा के विभाग
अध्याय 17 : श्लोक-4


यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसा: ।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जना: ॥4॥[1]

भावार्थ

सतोगुण व्यक्ति देवताओं को पूजते हैं, रजोगुणी यक्षोंराक्षसों की पूजा करते हैं और तमोगुणी व्यक्ति भूत-प्रेतों को पूजते हैं।

तात्पर्य

इस श्लोक में भगवान विभिन्न बाह्य कर्मों के अनुसार पूजा करने वालों के प्रकार बता रहे हैं। शास्त्रों के आदेशानुसार केवल भगवान ही पूजनीय हैं। लेकिन जो शास्त्रों के आदेशों से अभिज्ञ नहीं, या उन पर श्रद्धा नहीं रखते, वे अपनी गुण-स्थिति के अनुसार विभिन्न वस्तुओं की पूजा करते हैं। जो लोग सतोगुणी हैं, वे सामान्यतया देवताओं की पूजा करते हैं। इन देवताओं में ब्रह्मा, शिव तथा अन्य देवता, यथा इन्द्र, चन्द्र तथा सूर्य सम्मिलित हैं। देवता कई हैं। सतोगुणी लोग किसी विशेष अभिप्राय से किसी विशेष देवता की पूजा करते हैं। इसी प्रकार जो रजोगुणी हैं, वे यक्ष-राक्षसों की पूजा करते हैं। हमें स्मरण है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के समय कलकत्ता का एक व्यक्ति हिटलर की पूजा करता था, क्योंकि भला हो उस युद्ध का, उसने उसमें काले धन्धे से प्रचुर धन संचित कर लिया था। इसी प्रकार जो रजोगुणी तथा तमोगुणी होते हैं, वे सामान्यतया किसी प्रबल मनुष्य को ईश्वर के रूप में चुन लेते हैं। वे सोचते हैं कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की तरह पूजा जा सकता है और फल एकसा होगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यजन्ते= पूजते हैं; सात्त्विकाः= सतोगुण में स्थित लोग; देवान्= देवताओं को; यक्ष-रक्षांसि= असुरगण को; राजसाः= रजोगुण में स्थित लोग; प्रेतान्= मृतकों की आत्माओं को; भूत-गणान्= भूतों को; च= तथा; अन्ये= अन्य; यजन्ते= पूजते हैं; तामसाः= तमोगुण में स्थित; जनाः= लोग।

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