श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 1

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
अध्याय-1 : श्लोक-1

धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ।।[1]

भावार्थ

धृतराष्ट्र ने कहा- हे संजय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ?

तात्पर्य

भगवद्गीता एक बहुपठित आस्तिक विज्ञान है जो गीता - महात्मय में सार रूप में दिया हुआ है। इसमें यह उल्लेख है कि मनुष्य को चाहिए कि वह श्रीकृष्ण के भक्त की सहायता से संवीक्षण करते हुए भगवद्गीता का अध्ययन करे और स्वार्थ प्रेरित व्याख्याओं के बिना उसे समझने का प्रयास करे। अर्जुन ने जिस प्रकार से साक्षात् भगवान् कृष्ण से गीता सुनी और उसका उपदेश ग्रहण किया, इस प्रकार की स्पष्ट अनुभूति का उदाहरण भगवद्गीता में ही है। यदि उसी गुरु-परम्परा से, निजी स्वार्थ से प्रेरित हुए बिना, किसी को भगवद्गीता समझने का सौभाग्य प्राप्त हो तो वह समस्त वैदिक ज्ञान तथा विश्व के समस्त शास्त्रों के अध्ययन को पीछे छोड़ देता है। पाठक को भगवद्गीता में न केवल अन्य शास्त्रों की सारी बातें मिलेंगी अपितु ऐसी बातें भी मिलेंगी जो अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं हैं। यही गीता का विशिष्ट मानदण्ड है। स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा साक्षात उच्चरित होने के कारण यह पूर्ण आस्तिक विज्ञान है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. धृतराष्ट्र: उवाच = राजा धृतराष्ट्र ने कहा; धर्म-क्षेत्रे = धर्मभूमि (तीर्थस्थल) में; कुरु-क्षेत्रे = कुरुक्षेत्र नामक स्थान में; समवेता: = एकत्र ; युयुत्सवः = युद्ध करने की इच्छा से; मामकाः = मेरे पक्ष (पुत्रों); पाण्डवा: = पाण्डु के पुत्रों ने; च= तथा; एव = निश्चय ही; किम = क्या; अकुर्वत = किया; सञ्जय = हे संजय ।

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