श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 543

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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भक्तियोग
अध्याय 12 : श्लोक-12


श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते।
ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छांतिरननन्तरम्।।12।।[1]

भावार्थ

यदि तुम यह अभ्यास नहीं कर सकते, तो ज्ञान के अनुशीलन में लग जाओ। लेकिन ज्ञान श्रेष्ठ ध्यान है और ध्यान से भी श्रेष्ठ है कर्म फलों का परित्याग क्योंकि ऐसे त्याग से मनुष्य को मन:शांति प्राप्त हो सकती है।

तात्पर्य

जैसा कि पिछले श्लोकों में बताया गया है, भक्ति के दो प्रकार हैं- विधि-विधानों से पूर्ण तथा भगवत्प्रेम की आसक्ति से पूर्ण। किन्तु जो लोग कृष्णभावनामृत के नियमों का पालन नहीं कर सकते, उनके लिए ज्ञान का अनुशीलन करना श्रेष्ठ है, क्योंकि ज्ञान से मनुष्य अपनी वास्तविक स्थिति को समझने में समर्थ होता है। यही ज्ञान क्रमश: ध्यान तक पहुँचाने वाला है, और ध्यान से क्रमश: परमेश्वर को समझा जा सकता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रेय:=श्रेष्ठ; हि=निश्चय ही; ज्ञानम्=ज्ञान; अभ्यासात्=अभ्यास से; ज्ञानात्=ज्ञान से; ध्यानम्=ध्यान; विशिष्यते=विशिष्ट समझा जाता है; ध्यानात्=ध्यान से; कर्म-फल-त्याग:=समस्य कर्म के फलों का परित्याग; त्यागात्=ऐसे त्याग से; शांति:=शांति: अनन्तरम्=तत्पश्चात्।

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