श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 653

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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पुरुषोत्तम योग
अध्याय 15 : श्लोक-13


गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधी: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्मक: ॥13॥[1]

भावार्थ

मैं प्रत्येक लोक में प्रवेश करता हूँ और मेरी शक्ति से सारे लोक अपनी कक्षा में स्थित रहते हैं। मैं चन्द्रमा बनकर समस्त वनस्पतियों को जीवन-रस प्रदान करता हूँ।

तात्पर्य

ऐसा ज्ञात है कि सारे लोक केवल भगवान की शक्ति से वायु में तैर रहे हैं। भगवान प्रत्येक अणु, प्रत्येक लोक तथा प्रत्येक जीव में प्रवेश करते हैं। इसकी विवेचना ब्रह्मसहिंता में की गयी है। उसमें कहा गया है- परमेश्वर का एक अंश, परमात्मा, लोकों में, ब्रह्माण्ड में, जीव में तथा अणु तक में प्रवेश करता है। अतएव उनके प्रवेश करने से प्रत्येक वस्तु ठीक से दिखती है। जब आत्मा होता है तो जीवित मनुष्य पानी में तैर सकता है। लेकिन जब जीवित स्फूलिंग इस देह से निकल जाता है और शरीरमृत हो जाता है तो शरीर डूब जाता है। निस्सन्देह सड़ने के बाद यह शरीर तिनके तथा अन्य वस्तुओं के समान तैरता है। लेकिन मरने के तुरन्त बाद शरीर पानी में डूब जाता है।

इसी प्रकार ये सारे लोक शून्य में तैर रहे हैं और यह सब उनमें भगवान की परमशक्ति के प्रवेश के कारण हैं। उनकी शक्ति प्रत्येक लोक को उसी तरह थामें रहती है, जिस प्रकार धूल को मुट्ठी। मुट्ठी में बन्द रहने पर धूल के गिरने का भय नहीं रहता। लेकिन ज्योंही धूल को वायु में फेंक दिया जाता है, वह नीचे गिर पड़ती है। इसी प्रकार यह सारे लोक, जो वायु में तैर रहे हैं, वास्तव में भगवान के विराट रूप की मुट्ठी में भरे हैं। उनके बल तथा शक्ति से सारी चर तथा अचर वस्तुयें अपने-अपने स्थानों पर टिकी हैं। वैदिक मंत्रों में कहा गया है कि भगवान के कारण सूर्य चमकता है और सारे लोक लगातार घूमते रहते हैं। यदि ऐसा उनके कारण न हो तो सारे लोग वायु में धूल के समान बिखर कर नष्ट हो जाएँ। इसी प्रकार से भगवान के ही कारण चन्द्रमा समस्त वनस्पतियों का पोषण करता है। चन्द्रमा के प्रभाव से सब्जियाँ सुस्वादु बनती हैं। चन्द्रमा के प्रकाश के बिना सब्जियाँ न तो भर सकती हैं और न स्वादिष्ट हो सकती हैं। वास्तव में मानव समाज भगवान की कृपा से काम करता है, सुख से रहता है और भोजन का आनन्द लेता है। अन्यथा मनुष्य जीवित न रहता। रसात्मकः शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। प्रत्येक वस्तु चन्द्रमा के प्रभाव से परमेश्वर के द्वारा स्वादिष्ट बनती हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गाम्= लोक में; आविश्य= प्रवेश करके; च= भी; भूतानि= जीवों को; धारयामि= धारण करता हूँ; अहम्= मैं; ओजसा= अपनी शक्ति से; पुष्णामि= पोषण करता हूँ; च= तथा; औषधीः= वनस्पतियों का; सर्वाः= समस्तः सोमः= चन्द्रमा; भूत्वा= बनकर; रस= आत्मकः= रस प्रदान करने वाला।

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