श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-44
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं भावार्थ तात्पर्य
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ तस्मात् - अतः; प्रणम्य - प्रणाम् करके; प्रणिधाय - प्रणत करके; कायम् - शरीर को; प्रसादये - कृपा की याचना करता हूँ; त्वाम् - आपसे; अहम् - मैं; ईशम् - भगवान् से; ईड्यम् - पूज्य; पिता इव - पिता तुल्य; सखा इव - मित्रवत्; सख्युः - मित्र का; प्रियः - प्रेमी; प्रियायाः - प्रिया का; अर्हसि - आपको चाहिए; देव - मेरे प्रभु; सोढुम् - सहन करना ।
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज