श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 506

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-40

नमः पुरस्तादथ पृष्ठस्ते
नमोSस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामीतविक्रमस्त्वं
सर्वं समाप्नोषि ततोSसि सर्वः।।[1]

भावार्थ

आपको आगे, पीछे, तथा चारों ओर से नमस्कार है। हे असीम शक्ति! आपअनन्त पराक्रम के स्वामी हैं। आप सर्वव्यापी हैं, अतः आप सब कुछ हैं।

तात्पर्य
कृष्ण के प्रेम से अभिभूत उनका मित्र अर्जुन सभी दिशाओं से उनको नमस्कार कर रहा है। वह स्वीकार करता है कि कृष्ण समस्त बल तथा पराक्रम के स्वामी हैं और युद्धभूमि में एकत्र समस्त योद्धाओं से कहीं अधिक श्रेष्ठ हैं। विष्णुपुराण में (1.9.69) कहा गया है–



योऽयं तवागतो देव समीपं देवतागणः।

स त्वमेव जगत्स्रष्टा यतः सर्वगतो भवान्॥

“आपके समक्ष जो भी आता है, चाहे वह देवता ही क्यों न हओ, हे भगवान्! वह आपके द्वारा ही उत्पन्न है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नमः – नमस्कार; पुरस्तात् – सामने से; अथ – भी; पृष्ठतः – पीछे से; ते– आपको; नमः-अस्तु – मैं नमस्कार करता हूँ; ते – आपको; सर्वतः – सभी दिशाओं से; एव– निस्सन्देह; सर्व – क्योंकि आप सब कुछ हैं; अनन्त-वीर्य – असीम पौरुष; अमित-विक्रमः – तथा असीम बल; त्वम् – आप; सर्वम् – सब कुछ; समाप्नोषि – आच्छादित करते हो; ततः – अतएव; असि – हो; सर्वः – सब कुछ।

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