श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 471

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्री भगवान का ऐश्वर्य
अध्याय-10 : श्लोक-40


नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया।।[1]

भावार्थ

हे परन्तप ! मेरी दैवी विभूतियों का अन्त नहीं है। मैंने तुमसे जो कुछ कहा, वह तो मेरी अनन्त विभूतियों का संकेत मात्र है।

तात्पर्य

जैसा कि वैदिक साहित्य में कहा गया है यद्यपि परमेश्वर की शक्तियाँ तथा विभूतियाँ अनेक प्रकार से जानी जाती हैं, किन्तु इन विभूतियों का कोई अन्त नहीं है, अतएव समस्त विभूतियों तथा शक्तियों का वर्णन कर पाना सम्भव नहीं है। अर्जुन की जिज्ञासा को शान्त करने के लिए केवल थोड़े से उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. न-न तो; अन्तः-सीमा; अस्ति-है; मम-मेरे; दिव्यानाम्-दिव्य; विभूतीनाम्-ऐश्वर्यों की; परन्तप-हे शत्रुओं के विजेता; एषः-यह सब; तु-लेकिन; उद्देशतः-उदाहरणस्वरूप; प्रोक्तः-कहे गये; विभूतेः-ऐश्वर्यों के; विस्तरः-विशद दर्शन; मया-मेरे द्वारा।

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