श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 470

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्री भगवान का ऐश्वर्य
अध्याय-10 : श्लोक-39


यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्।।[1]

भावार्थ

यही नहीं, हे अर्जुन ! मैं समस्त सृष्टि का जनक बीज हूँ। ऐसा चार तथा अचर कोई भी प्राणी नहीं है, जो मेरे बिना रह सके।

तात्पर्य

प्रत्येक वस्तु का कारण होता है और इस सृष्टि का कारण या बीज कृष्ण हैं। कृष्ण की शक्ति के बिना कुछ भी नहीं रह सकता, अतः उन्हें सर्वशक्तिमान कहा जाता है। उनकी शक्ति के बिना चार तथा अचर, किसी भी जीव का अस्तित्व नहीं रह सकता। जो कुछ कृष्ण की शक्ति पर आधारित नहीं है, वह माया है अर्थात “वह जो नहीं है।”

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यत्-जो; च-भी; अपि-हो सकता है; सर्व-भूतानाम्-समस्त सृष्टियों में; बीजम्-बीज; तत्-वह; अहम्-मैं हूँ; अर्जुन-हे अर्जुन; न-नहीं; तत्-वह; अस्ति-है; विना-रहित; यत्-जो; स्यात्-हो; मया-मुझसे; भूतम्-जीव; चर-अचरम्-जंगम तथा जड़।

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