श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-36
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या भावार्थ तात्पर्य |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अर्जुनः उवाच– अर्जुन ने कहा; स्थाने – यह ठीक है; हृषीक-ईश – हेइन्द्रियों के स्वामी; तव – आपके; प्रकीर्त्या – कीर्ति से; जगत् – सारा संसार; प्रहृष्यति – हर्षित हो रहा है; अनुरज्यते – अनुरक्त हो रहा है; च – तथा; रक्षांसि– असुरगण; भीतानि – डर से; दिशः – सारी दिशाओं में; द्रवन्ति – भाग रहे हैं; सर्वे– सभी; नमस्यन्ति – नमस्कार करते हैं; च – भी; सिद्ध-सङ्घाः – सिद्धपुरुष।
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