श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 643

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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पुरुषोत्तम योग
अध्याय 15 : श्लोक-6


न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावक: ।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥6॥[1]

भावार्थ

वह मेरा परम धाम न तो सूर्य या चन्द्र के द्वारा प्रकाशित होता है और न अग्नि या बिजली से। जो लोग वहाँ पहुँच जाते हैं, वे इस भौतिक जगत में फिर लौट कर नहीं आते।

तात्पर्य

यहाँ पर आध्यात्मिक जगत अर्थात भगवान कृष्ण के धाम का वर्णन हुआ है, जिसे कृष्णलोक या गोलोक वृन्दावन कहा जाता है। चिन्मय आकाश में न तो सूर्य प्रकाश की आवश्यकता है, न चन्द्र प्रकाश अथवा अग्नि या बिजली की, क्योंकि सारे लोक स्वयं प्रकाशित हैं। इस ब्रह्माण्ड में केवल एक लोक, सूर्य, ऐसा है जो स्वयं प्रकाशित है। लेकिन आध्यात्मिक आकाश में सभी लोक स्वयं प्रकाशित हैं। उन समस्त लोकों के[2] चमचमाते तेज से चमकीला आकाश बनता है, जिसे ब्रह्मज्योति कहते हैं। वस्तुतः यह तेजकृष्ण, गोलोक वृन्दावन से निकलता है। इस तेज का एक अंश महत्-तत्त्व अर्थात भौतिक जगत से आच्छादित रहता है। इसके अतिरिक्त ज्योतिर्मय आकाश का अधिकांश भाग तो आध्यात्मिक लोकों से पूर्ण है, जिन्हें बैकुण्ठ कहा जाता है और जिनमें से गोलोक वृन्दावन प्रमुख है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. न= नहीं; तत्= वह; भासयते= प्रकाशित करता है; सूर्यः= सूर्य; न= न तो; शशांकः= चन्द्रमा; न= न तो; पावकः= अग्नि, बिजली; यत्= जहाँ; गत्वा= जाकर; न= कभी नहीं; निवर्तन्ते= वापस आते हैं; तत्-धाम= वह धाम; परमम्= परम; मम= मेरा।
  2. जिन्हें बैकुण्ठ कहा जाता है

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