श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-12
लोभ: प्रवृत्तिरारम्भ: कर्मणामशम: स्पृहा ।
हे भरतवंशियों में प्रमुख! जब रजोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो अत्यधिक आसक्ति, सकाम कर्म, गहन उद्यम तथा अनियन्त्रित इच्छा एवं लालसा के लक्षण प्रकट होते हैं। रजोगुण व्यक्ति कभी भी पहले से प्राप्त पद से संतुष्ट नहीं होता, वह अपना पद बढ़ाने के लिए लालायित रहता है। यदि उसे मकान बनवाना है, तो वह महल बनवाने के लिए भरसक प्रयत्न करता है, मानो वह उस महल में सदा रहेगा। वह इन्द्रिय तृप्ति के लिए अत्यधिक लालसा विकसित कर लेता है। उसमें इन्द्रियतृप्ति की कोई सीमा नहीं है। वह सदैव अपने परिवार के बीच तथा अपने घर में रह कर इन्द्रियतृप्ति करते रहना चाहता है। इसका कोई अन्त नहीं है। इस सारे लक्षणों को रजोगुण की विशेषता मानना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लोभः= लोभ; प्रवृत्तिः= कार्य; आरम्भः= उद्यम; कर्मणाम्= कर्मो में; अशमः= अनियन्त्रित; स्पृहा= इच्छा; रजसि= रजोगुण में; एतानि= ये सब; जायन्ते= प्रकट होते हैं; विवृदधे= अधिकता होने पर; भरत-ऋषभ= हे भरतवंशियों में प्रमुख।
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